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लेखनी प्रतियोगिता -07-Dec-2022

     💐💐स्वेच्छा 💐💐
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 स्वेच्छा से दबे पांव उनका घर में प्रवेश 

 अजनबी सा एक आभार था ।

 हवा में कंपन पैदा कर गया ।

 जैसे पानी में लहरें उठने लगी हो ।

 लगा कोई सपना देख रही हूं ।

 एक अनूठा सुगंधमय वातावरण पैदा हो गया ।।



 स्वेच्छा से स्वतंत्रता का आभास हुआ ।

 जीवन में उमंग भरी शक्ति का संचार हो गया ।

 हवा से मैं बातें करने लगी   ।

 मानो पर लग गए हो ।

 ऐसा लगा मानो स्वर्ग मिल गया हो ।

 जैसे क्षितिज मिल गया हो ।।



  स्वेच्छा से उनका प्रपोज करना  

 एक संगीत पैदा कर गया ।

 संसार का सर्वोत्तम उपहार दे गया ।

 स्वेच्छा से नए चाहती हुई उनकी बाहों में समा गई।

 किन्तु अचानक पहाड़ टूट पड़ा  ।

 नींद खुलते ही सपना टूट गया  ।

 लगा धरातल में समा गई ।

 काश यह सपना सचमुच में सही होता ।

 जिंदगी में  हर वक्त स्वेच्छा मायने नहीं रखती ।।



 स्वेच्छा से मां का आंचल पाकर 

 लगा जन्नत की सैर हो गई ।

 कुबेर का खजाना मिल गया ।

 लगा मुझसे बड़ा भाग्यशाली कोई नहीं 

 प्यार की लड़ाई में  मैं  विजय प्राप्त कर गई।। 



 हनीप्रेम  विजय   (विजय पोखरणा)


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7 Comments

बहुत खूब

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Santosh Pokharna

08-Dec-2022 10:21 PM

लाजवाब

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Varsha_Upadhyay

08-Dec-2022 08:38 PM

शानदार

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